सम्पादकीय

सेवा करना सदैव प्रशंसा की श्रेणी में आता है। आप इस पुनीत कार्य के लिये आगे बढ़ेंगे तो लोग आपका तन, मन व धन से साथ देंगे। सेवा करने वालों पर साधन का कोई अभाव नहीं रहता है। मुख्य बिन्दु यह है कि सेवा किस की करें। अक्सर सेवा करने के लिये कच्ची बस्तियाँ, सरकारी स्कूल, सड़क पर धूम रही आवारा गाय, भिक्षावृत्ति में संलग्न लोग, निशक्तजन इत्यादि को चुना जाता है। इनमें से चुने गये सैगमेंट में कार्य करते समय पुन: उन लोगों की पहचान करनी होगी जिन्हें मदद की आवश्यकता हो। आँख मींच कर आँकड़े बनाने के उद्देश्य से सेवा कार्य करदेने से कोई विशेष लाभ होने वाला नहीं है। कहा गया है कि दान सदैव सुपात्र को देना चाहिये। अर्थात् जहाँ आवश्यकता हो वहाँ मदद की जाये तो पाने वाले और देने वाले दोनों को ख़ुशी होती है। नशा करने वालों को दान देना, उसे नशे में ढकेलना होगा।  बच्चों को भीख देना भी अनुचित है। सच्चे सेवक को सोच समझ कर पात्र का चयन करना होगा।  बहुत से गऊ पालक दूध निकालने के बाद गाये को बाहर निकाल देते हैं। ऐसी गायों को भी लोग सुबह से लेकर शाम तक हरा चारा खिलाते रहते हैं। मकर संक्रान्ति को चारा इतना डाला जाता है कि वह कीचड़ में बदलने लगता है। लोग फिसल कर गिरने लगते हैं। अपने समाज में सामान्य वर्ग में भी बहुत से ऐसे परिवार हैं जो आर्थिक संकट की आख़िरी कगार पर होते हैं। वे भूखे सो सकते हैं लेकिन माँगने नहीं निकलते। उन लोगों की आय या स्कूल फ़ीस का कोई इंतज़ाम हो जाये। बच्चे के अच्छे प्राप्तांक के नाम पर छात्रवृति दे दी जाये। तब उनके चेहरे की प्रसन्नता का दृश्य देखा जा सकेगा। ऐसे विद्यार्थी को उससे छोटी कक्षा के बालक की ट्यूशन दिला कर एक आय का श्रोत बना दिया जाये तो वह बुझते दिये में तेल का काम करेगा। कहने का तात्पर्य यह है कि परम्परागत सेवा से हट कर कुछ ऐसे कार्य किये जायें जिससे किसी चेहरे पर मुस्कराहट देखी जा सके।